मुफ्त आयुर्वेदिक परामर्श उपलब्ध है, Whatsapp chat द्वारा परामर्श लेने के लिए - क्लिक करें। 

Orders above ₹999 are eligible for free Delivery. Hurry up!!

एक सामान्य व्यक्ति के शरीर में तीन प्रवृत्तियां होती हैं, वात, पित्त और कफ। आयुर्वेद  में इनको त्रिदोष कहा जाता है। आमतौर पर हम अपने खान – पान, रहन सहन, अपनी लाइफस्टाइल आदि से इन तीनों दोषों को नियंत्रण में रखते हैं। किन्तु आजकल एक आम इंसान की लाइफस्टाइल इतनी बदल गई है कि उसे इन त्रिदोषों के बारे में न तो जानकारी है और ना ही वह जानना चाहता है। इसलिए उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति बीमारियों के चपेट में आना शुरू हो जाते हैं। ये त्रिदोष हमारे शरीर के स्तम्भ होते हैं और हमारे रहन – सहन, खान – पान आदि के कारण प्रभावित होते हैं। यदि हमारे रहन – सहन, खान – पान आदि के कारण इन त्रिदोषों में से कुछ भी अनबैलेंस होता है तो हम बीमार पढ़ते हैं। इस लेख में आज हम त्रिदोषों में से वात के अनबैलेंस होने के कारण होने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी लेंगे।

वात के अनबैलेंस होने से होने वाले रोग –  वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। आयुर्वेद की प्रमुख पुस्तक चरक संहिता में बताया गया है कि त्रिदोषों में से यदि वात अनबैलेंस हो गया तो हमें कुल 80 बीमारियां हो सकती हैं। आइये जानते हैं ये 80 रोग क्या- क्या हैं, और इनकी पहचान क्या है –

क्रमांक बीमारी का नाम लक्षण
1 नखभेद नाखूनों का टूटना।
2 विपादिका हाथ-पैर फटना।
3 पादशूल पैरों में दर्द होना।
4 पादभ्रंश पैरों पर नियंत्रण न हो पाना
5 पादसुप्तता पैरों का सुन्न होना।
6 वात खुड्डता पैर और जांघ की हड्डियों के जोड़ों में वात के कारण दर्द होना, कमर के नीचे टखने तक की हड्डियों में जोडों में दर्द होना। इसे आजकल आर्थराइटिस भी कहा जाता है
7 गुल्फ ग्रह एड़ी के आसपास सात हड्डियों के समूह को गुल्फ प्रदेश कहते हैं और गुल्फ प्रदेश में जकड़न होना गुल्फ ग्रह कहा जाता है
8 पिडिकोद्वेष्टन पैर की पिंडलियों में ऐंठन जैसा दर्द।
9 ग्रध्रसि सायटिका का दर्द।
10 जानू भेद घुटनों के ऊपर वाली हड्डी में टूटने जैसा दर्द।
11 जानुविश्लेष जांघ की हड्डियों का ढीला हो जाना
12 उरूस्तंभ जांघ से कमर तक की हड्डियों का जकड़ जाना
13 ऊरूसाद ऊरूप्रदेश में शिथिलता का अनुभव होना।
14 पांगुल्य लंगड़ापन।
15 गुदभ्रंश गुदा बाहर निकलना।
16 गुदा प्रदेश में दर्द  
17 वृषणोत्क्षेप अंडग्रंथियों का ऊपर चढ़ जाना
18 शेफ स्तंभ मूत्रेन्द्रियों में जकड़ाहट।
19 वंक्षणानाह मूत्राशय और जंधास्थल के संधिस्थान में दर्द होना
20 श्रोणिभेद कूल्हे वाली हड्डी में टूटने जैसा दर्द।
21 विड्भेद मल स्थान के आसपास टूटने जैसी पीड़ा।
22 उदावर्त पेट की गैस ऊपर की ओर आना।
23 खंजता लंगड़ापन आना।
24 कुब्जता कूबड़ का होना।
25 वामनत्व उल्टी होना।
26 त्रक ग्रह पृष्ठ ग्रह- पीठ व नीचे तक बैठक वाली स्थान की हड्डी त्रिकास्थि में दर्द होना।
27 पाश्र्वमर्द  पाश्र्व प्रदेश में मर्दन के समान पीड़ा होना।
28 उदरावेष्ट पेट में ऐंठन होना।
29 दिल बैठने जैसा महसूस होना  
30 हृदद्रव हृदय में द्रवता अर्थात् शीघ्रता से गति का होना।
31 वक्षोद्घर्ष वक्षप्रदेश में घिसने के समान पीड़ा।
32 वक्षोपरोध वक्ष:स्थल की गतियां यानी फुफ्फुस व हृदय गति में रुकावट का अनुभव।
33 वक्ष:स्तोद छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा।
34 बाहूशोष भुजा से अंगुली तक मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन व जकडऩ। हाथ ऊपर न उठना।
35 ग्रीवास्तम्भ गर्दन का जकड़ जाना।
36 मंथा स्तम्भ गर्दन के पीछे लघु मस्तिष्क के नीचे के हिस्से में जकडऩ व पीड़ा।
37 कंठोध्वंस गला बैठ जाना।
38 हनुभेद ठोडी में पीड़ा।
39 ओष्ठभेद होंठों में दर्द।
40 अक्षिभेद आंखों में दर्द।
41 दन्तभेद दांतों में पीड़ा।
42 दन्तशैथिल्य दांतों का हिलना।
43 मूकत्व गूंगापन।
44 बाक्संग आवाज बंद होना।
45 कषायास्यता मुंह कड़वा होना।
46 मुखशोष मुंह का सूखना।
47 अरसज्ञता रस का ज्ञान न होना।
48 घ्राणनाश गंध का ज्ञान न होना।
49 कर्णमूल कान की जड़ में दर्द
50 अशब्द श्रवण ध्वनि न होते हुए भी शब्दों का सुनना।
51 उच्चै:श्रुति ऊंचा सुनना।
52 बहरापन कान से सुनाई न देना
53 वत्र्म स्तंभ आंखों की पलकें ऊपर- नीचे नहीं होना।
54 वत्र्म संकोच नेत्र में सूजन व पलकों का सिकुड़ना
55 तिमिर आंखों से धुंधला व कम दिखाई देना।
56 नेत्रशूल आंखों में दर्द होना।
57 अक्षि व्युदास नेत्रों का टेढ़ा होना।
58 भ्रूव्य दास भौंहों का टेढ़ा होना।
59 शंखभेद कनपटी में दर्द।
60 ललाट भेद आंखों के ऊपर वाले हिस्से में पीड़ा।
61 शिर सिरदर्द।
62 केशभूमिस्फुट बालों की जड़ों में विकृति होना।
63 अर्दित मुंह का लकवा।
64 एकाग घात इसमें पेशी शिथिल हो जाती है।
65 सर्वांगघात यह जन्मजात मस्तिष्क का रोग है।
66 आक्षेपक हाथ पैरों को जमीन पर पीटना व बार-बार उठाना, मस्तिष्क में वातनाड़ी दूषित होने पर मिर्गी जैसे झटके आना।
67 दंडक शरीर में वात दृष्टि से पूरे शरीर की मांसपेशियां डंडे की तरह स्थिर हो जाती हैं। इसे दंडापतानक कहते हैं।
68 तम: तमदोष झुंझलाहट होना।
69 भ्रम: चक्कर आना।
70 वेपथु: कंपकंपी होना,
71 जंभाई कंपकंपी होना,
72 हिचकी हिचकी आना
73 विषाद् दुखी रहना।
74 अतिप्रलाप बिना बात के निरर्थक बोलना।
75 शरीर में रूक्षता रुखापन।
76 शरीर में परुषिता शिथिलता आना।
77 शरीर का काला होना।  
78 शरीर का रंग लाल होना।  
79 अनिद्रा नींद न आना।
80 चित्त स्थिर न रहना।  

सामान्यतः लोगों को भ्रम रहता है कि वात रोग का मतलब आर्थराइटिस है जबकि ऐसा नहीं है। आर्थराइटिस वात के अनबैलेंस होने के कारण होने वाली एक बीमारी है। यदि आपको उपरोक्त बीमारियों के लक्षणों में से कोई लक्षण दिखाई देता है तो आप हमारे आयुर्वेदाचार्यों से संपर्क कर सकते हैं। हमारा संपर्क सूत्र है 7756907963, हम आपको सम्पूर्ण समाधान उपलब्ध करवाते हैं। इसके अतिरिक्त आप वात रोग के समाधान के लिए आयुर्वेदिक औषधियाँ यहाँ से आर्डर कर सकते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

X
%d bloggers like this: